“श्री 5 पद्मावतीपुरी धाम, पन्ना (मुक्ति पीठ) के ब्रम्हमुनि श्री कामदार जी साहेब "
“श्री 5 पद्मावतीपुरी धाम, पन्ना (मुक्ति पीठ) के ब्रम्हमुनि श्री कामदार जी साहेब "
श्री पद्मावतीपुरी धाम-पन्ना के ब्रम्हमुनि श्री कामदार जी जिन्हें पूर्णब्रम्ह परमात्मा अनंत श्री महामति श्री प्राणनाथ जी नें सुन्दरसाथ की व्यवस्था पूर्ण रूप से संचालित करने के लिए श्री सुन्दरसाथ समूह में ही जिसे परम कर्तव्यनिष्ठ, सेवा परायण समझा उसे श्री सुन्दरसाथ जी की सर्वागीण सेवा के लिऐ "कामदार पद" की मानद उपाधी से अलंकृत किया ।
उन्ही सर्वश्रेष्ट कामदार ब्रम्हमुनि जिन्होने वि.स.1735-36 से 2019 तक पद की गरिमा को सुशोभित किया । उन्ही ब्रम्हमुनि कामदार का संक्षिप्त जीवन-दर्शन जिसके सम्बद्ध में श्री ब्रम्हमुनि श्री लालदास जी कृत वीतक साहेब में लिखा है कि-
दिन आठों पोहोर की, कही वीतक जो ए । नित्य कारखानें सेवही, कहों साथी सब सेवन के ।।
मूल कुल दिवानगीरी, थी सेवा गरीबदास । सो नित्य अरज करें, अब चलें न सेवा मो पास ।।
एह तुम देओ और को, मजल रामनगर । कहा बहुत आतुर होय के, तब हुकम हआ लाल पर ।।
गढ़ें से हुकम हुआ, पातसाह के हजूर । तब वृदावंन को दई, जान के काम जरूर ।।
लाल का रेहेना हुआ, हुकम न हुआ तेह । सुनी ए सकुण्डल, परने जाय कहीं एह ।।
तब लालदास का पठाए, ले परना को पैगाम । महाराजा सों मिलकें, किया बुलावने का काम ।।
आय पोहोंचें जब परना में, लाल चले न तब । तब छोड़ी वृन्दावन ने, फेर दई लालदास को सब ।।
दे पठाई कुंजीय को, लाल को हुआ हुकम । एह आई आज्ञा से सेवा करों अब तुम ।।
मूल छत्तीस कारखानें का, सब हाथ दिया लाल के । जिनकों जो कछु चाहिये, सो सबों पोहोचावे ए।।

1. ब्रह्ममुनी श्री गरीबदास जी महाराज
इस व्यवस्था की परम्परा के प्रारम्भ में सर्वप्रथम कामदार का महत्वपूर्ण पद श्री गरीबदास जी को प्रदान किया गया।
नाग जी अति नेह सो, छोड़ी कुटुम्ब की आस ।
तनम न धन सब ले चल्या, पाया खिताब 'गरीबदास'
(श्री लालदास कृत बीतक)

2. ब्रह्ममुनी श्री लालदास जी महाराज
कामदार श्री गरीबदास जी के पश्चात् यह सुन्दरसाथ की महत्वपूर्ण सेवा महामति जी ने श्री लालदास जी को प्रदान की। लीकिन रामनगर से औरंगजेब के समीप पुनः जागनी संदेश भेजने के लिए लालदास जी को आदेश प्रदान किया गया। अतः कामदारी की महत्वपूर्ण सेवा को सुचारू रूप से सम्पन्न करने के लिए यह पद श्री वृदांवन जी को प्राप्त हुआ।

3. ब्रह्ममुनी श्री वृन्दावन जी महाराज
श्री वृदांवन जी भुजनगर (गुजरात) के मूल निवासी श्री हरिदास के पुत्र थे। श्री हरिदास जी महाराज को श्री बालमुकुन्द जी ने प्रत्यक्ष दर्शन देकर जब श्री देवचन्द्र जी महाराज के परम दिव्यतम स्वरूप का परिचय प्रदान किया, तब उससे प्रवाभित होकर श्री हरिदास जी श्री देवचन्द्र जी से दीक्षा प्राप्त कर अपने पूरे परिवार सहित उनके चरणों में समर्पित हो गये। श्री वृदांवन जी भी उनके साथ थे।

4. ब्रह्ममुनी श्री लालदास जी महाराज
श्री 5 पदमावतीपुरी धाम में श्री सुन्दरसाथ के विशाल जन-समूह की सेवा का भार संभालतें हुए अनेक बार धार्मिक शास्त्रार्थ करने पड़े सुन्दर-बल्लभ, शास्त्रार्थ, भटटाचार्य शास्त्रार्थ, मौलवी शास्त्रार्थ बहुत ही महत्वपूर्ण थें। जिनमें आपने समस्त ब्रम्हमुनियों के पूर्ण सहयोंग से सदा विजय प्राप्त की, वीतक रचना भी इसी समय हुई। इस प्रकार महाराज लालदास जी का सेवा भाव आदर्शपूर्ण तथा आज भी अनुकरणीय है।

5. ब्रह्ममुनी परमसाध्वी श्री लाल बाई जी
परम साध्वी लालबाई जी वि.स. 1729 में अपने पतिदेव श्री लालदास जी के साथ सपरिवार लक्ष्मणपुर (पोरवंदर) से पधारी थी और श्री धनी के चरण-कमलों में आत्म-समर्पण किया था, तब से सम्पूर्ण जागनी अभियान में पूर्ण रूप से शामिल रहीं और समय-समय पर अन्य आवश्यक सेवाओं में बड़ी निष्ठा से जुड़ी रहीं।
श्री महाराज लालदास जी के पश्चात आपको महाराजा श्री छत्रशाल जी और समस्त श्री सुन्दरसाथ जी के श्रद्वापूर्ण आग्रह से कामदारी का पद स्वीकार करना पड़ा । मातृ हृदय श्री लालवाई ने श्री सुन्दरसाथ की सम्पूर्ण सेवा व्यवस्था बड़े ही वात्सल्य भाव से निभाई। अपने माधुर्यपूर्ण व्यवहार से श्री सुन्दरसाथ का मन सदा आकर्षित रखा।

6. ब्रह्ममुनी श्री मल्ला जी महाराज
श्री मल्ला जी कामदार मेड़ता निवासी श्री ब्रम्हमुनि श्री मकरन्द जी के परिवार के बड़े गुणवान, ऐश्वर्यवान और लोक-व्यवहार में बड़े निपुण महापुरूष थें लेकिन उग्र स्वभाव के थे। इसलिए धार्मिक तथा समाजिक कार्यो मे कठोर अनुशासन को मानतें थे। धर्म निष्ठा के कारण राजनैतिक हस्तक्षेपों से प्रभावित न होते थे।

7. ब्रह्ममुनी श्री नोने जी महाराज
श्री मल्ला जी कामदार के पश्चात अत्यन्त सेवाभावी श्री नोनेजू कामदार पद पर पदासीन किये गये, लेकिन विभिन्न मतवाद उत्पन्न हो जाने के कारण कुछ समय के पश्चात ही इस पद से मुक्त होना पड़ा।

8. ब्रह्ममुनी श्री मन्ना जु महाराज
श्री नोनेजू के पश्चात श्री मन्नाजू ने कामदार पद सुशोभित किया। श्री मन्नाजू सात्विक आचरणशील थें, मधुर भाषी थें, लोक व्यवहार में कुशल थे। सुन्दरसाथ के प्रति सौहार्दपूर्ण व्यवहार रखतें थे। समयानुसार श्री मंदिर जी की व्यवस्था में अथवा सुन्दरसाथ के विशेष आग्रह पर यदि किसी परिवर्तन या संवर्धन की विशेष आवश्यकता पड़ती तब उसकी पूर्ति के लिए स्थानिय समस्त सुंन्दरसाथ को एकत्रित कर उनकी सम्मति और पूर्ण सहयोग प्राप्त करने के उपरान्त ही आगे कदम उठातें, वे स्वयं को श्री घनी जी और श्री सुन्दरसाथ का एक साधारण सेवक मानते थे। उनका कार्य संचालन बड़ा ही आदर्श पूर्ण था, जो आज के युग में परम अनुकरणीय माना जा सकता है।

9. ब्रह्ममुनी श्री खुमानदास जी महाराज
ब्रम्हमुनि वशांतवशं श्री खुमानदास जी महाराज श्री मन्नाजू कामदार के पश्चात पदासीन हुये। श्री मुखवाणी के अच्छे ज्ञाता थें। संप्रदाय में प्रणालिका लेखन की बड़ी स्वस्थ परम्परा रही है। श्री कामदार साहेब श्री खमानजू ने अपनी मौलिक शैली में प्रणालिका लिखी थी, जिसका प्रकाशन मुक्तिपीठ मासिक पत्रिका के वर्ष 14 अंक 1-2 में किया गया है, इसकी भाषा सरल और सुबोधात्मक है।

10. ब्रह्ममुनी श्री कल्याणदास जी महाराज
कामदार श्री खुमानजू के बाद श्री कल्लू जी (कल्याणदास) कामदार पद पर समासीन हुये। आप बड़े मधुर भाषी थे। इससे समस्त स्थानिय श्री सुन्दरसाथ को लेकर मंदिर जी की व्यवस्था का सुचारू रूप से सचांलन करते थे। उनकी बड़ी विशेषता यह थी कि श्री मंदिर जी तथा समाजिक कार्यों में श्री सुन्दरसाथ की सम्मति और सहयोग के साथ ही अपने उत्तरदायित्व को निभाते थें।

11. ब्रह्ममुनी श्री उत्तमदास जी महाराज
श्री उत्तमदास जू महाराज ठठानगर के मूल निवासी थे। राम कबीर पंथ के आचार्य एवं दिल्ली जागनी अभियान में जिन बारह ब्रम्हमुनि-जनों ने अपने सिर पर कफन बांधकर हिन्दू धर्म द्रोही बादशाह औरगजेब के समीप महामति जी के 'इमामत' और श्री विजयाभिनन्द निष्कंलक बुद्ध स्वरूपका पैगाम पहुँचाने का अग्निव्रत लिया था, उनमें महन्त श्री चिन्तामणी भी सम्मिलित थे। श्री उत्तमदास जी महाराजह उन्हीं की वंश परम्परा में बड़ेही प्रभावशाली व्यक्तित्व के धनी थें। आपने बड़ी गरिमा के साथ कामदार पद की सुरक्षा की। आप स्वभाव से गंभीर तथा हृदय से बड़े उदार थें। शाहगढ़ नरेश महाराजा श्री बखतबली जी के राज दरबार में आपका बड़ा ही सम्मान था। महाराजा श्री बखतबली ने आपके परिवार को 'बुडेरा' नामक ग्राम जागीर के रूप में प्रदान किया था। जिसमें आज भी आपके वंशज निवास करते है। यह ग्राम पहिलें सागर जिले में था, अब छतरपुर जिले में स्थित है।

12. ब्रह्ममुनी श्री निर्मलदास जी महाराज
श्री मान उत्तमदास जी कामदार के बाद श्री निर्मलदास जी महाराज कामदार पद पर पदासीन हुये। आप स्थानिय समाज में ठाकुर बब्बा जी के नाम से प्रसिद्ध हुयें, आपका जन्म श्री महामति श्री प्राणनाथ जी के अग्रज भाई श्री श्यामलिया ठाकुर की पॉचवी पीढ़ी के अन्तर्गत श्री युक्त ठाकुर साहेब भक्तराज जी के यहाँ वि.स. 1848 में हुआ था। आपका जीवन चमत्कारपूर्ण एवं आदर्शमय था। आपने अपना विशेष समय भजन-पूजन और श्री सुन्दरसाथ की सेवा में ही व्यतीत किया। आपने श्री जी की कृपा से ही कामदार पद प्राप्त किया था। आप सदा आत्म-संतोषी होने के कारण राज-वैभव एवं लोक सम्मान से सदा दूर रहते थे। सादा जीवन, उच्च विचारों के आप धनी थे। उस समय आज के युंग की तरह मंदिर जी का विशाल कार्य विभाग नहीं था। सीमित आय से ही मंदिर जी का संपूर्ण कार्य संपन्न होता था।

13. ब्रह्ममुनी श्री छबिलदास जी महाराज
आपका जन्म वि. संवत 1856 में श्री पदमावतीपुरी धाम पन्ना में हुआ था, आपके पिताजी का शुभ नाम श्री पण्ड़ित भूधर जी मिश्र था। आपकी शिक्षा-दीक्षा घर पर ही सम्पन्न हुई । साधारण हिन्दी ज्ञान के पश्चात आपकी श्री मुखवाणी के अध्ययन मनन की ओर स्वाभाविक रूचि हो गई। आपने सुप्रसिद्ध सांप्रदायिक महापण्डित और ज्ञानी श्री किशुनदास जी महाराज से श्री मुखवाणी की शिक्षा प्राप्त की। श्री मुखवाणी निरन्तर अध्ययन-मनन और चिन्तन करने से आपको इतना अधिक अभ्यास हो गया था कि श्री क्यामतनामा की अन्तिम चौपाई से कण्ठस्थ पाठ आरम्भ करते और रास ग्रन्थ की आदि चौपाई 'हवे पेहेला मोहजलनी कहूँ बात' पर विश्राम करते। आपने कुछ वर्ष 'कामदार' पद संभाला, लेकिन आपका मन अधिक समय तक न लग सका। आप स्वच्छंद प्रकृति के थे। इसलिये निकटस्थ ही 'मुड़िया पहाड़' झावर (गूदा) कंचन नरैया, चौपडा मंदिर आदि सघन जंगलों में निराहार रहकर महीनों तप और समाधी में लीन रहते। आपके अनेक शिष्य हुये, जिनमें नेपाल निवासी श्री बृजराज जी, पंजाब निवासी श्री गरीबदास जी प्रसिद्ध है। आपने सिन्धी, वाणी और क्यामतनामा ग्रंथो की टीकायें और श्री मुखवाणी के बिखरे हुये प्रसंगो को सरलता से समझने के लिए 30 सनमंधो का संकलन किया। अन्त में वि. स. 1947 में फागुन वदी द्वितीया को आपने अखण्ड़ समाधि ले ली।

14. ब्रह्ममुनी श्री गोपालदास जी महाराज
श्री गोपालदास जी कामदार का शुभ-जन्म वि.स. 1858 में श्री पदमावतीपुरी धाम में हुआ था। आपके पूज्य पिता जी का नाम श्री श्यामलाल तथा परम साध्वी माता जी का नाम श्री मती पानकुंवर था। आप स्वभाव से बड़े ही विघा-व्यसनी थें। आपका हृदय परम-उदार था और पर दुःख के लिए सदा आतुर रहता था। आप आद्वितीय वैध थे, आपका नाड़ी ज्ञान बहुत आलौकिक था। आप प्रायः नाड़ी में सूत बाँधकर बहुत दूर स्थित हो मरीज के रोग का सही निदान किया करते थे। आपकी प्रख्याती सुनकर एक बार स्थानीय राजमहल में बुलवाया गया और तोते की टाँग में सूत बाँधकर आपकी परीक्षा ली गई। आपके अलौकिक नाड़ी विज्ञान से परीक्षक शरमाये और आपको राज सम्मान पदान किया गया। आपका कवि हृदय बड़ा ही भावना प्रधान था, आपके द्वारा रचित एक छोटा'भजन लावनी ग्रंथ' तथा एक बहुत महात्वपूर्ण 'विष-उद्वार' नामक ग्रंथ उपलब्ध है जिसकी कुछ बानगी निम्न रूप से प्रसिद्ध है---
डूब मरे कै सती-जती (छन्द लावनी)

15. ब्रह्ममुनी श्री राजबक्स जी महाराज
श्री गोपालदास महाराज के पश्चात श्रीमान राजबक्स जी कामदार पद पर समासीन हुये । आपके पिता श्री भगवानदास जी थे, माता जी का नाम श्री मउआ जी था । पन्ना नरेश रूद्रप्रताप जी का शासनकाल था । श्री राजबक्स जी की कामदारी में महाराज रूद्रप्रताप जी ने श्री बंगला दरवार में गंगा-जमुनी से सूर्यमुखी पंखे समर्पण किये थे ।
पन्ना नरेश बहुत अर्से से दूसरे धर्म के अनुयायी हो चुके थें, लेकिन महाराजा श्री छत्रशाल जी ने अपने शासन काल श्री प्राणनाथ जी मंदिर की जो परम्परायें प्रारम्भ की थी, उसमे आज तक किसी प्रकार का अन्तर नहीं पड़ सका । यह समय की विडम्बना है कि आपने कुछ बर्षों तक ही कामदार पद को सुशोभित किया ।

16. ब्रह्ममुनी श्री सुंदरदास जी महाराज
श्री राजबक्स जी कामदार के पश्चात श्री सुन्दरदास जी महाराज कामदार पद पर नियुक्त किये गये। आपके पूज्य पिता का नाम श्री नारायणदास जी था। आपका व्यक्तित्व बड़ा ही प्रभावशाली था। आप उच्च कोटि के ज्ञानी थे। मंदिर जी में प्रत्येक तिथि त्यौहार आपके भजन और कीर्तनो के मधुर रागो से बहुत ही माधुर्यपूर्ण और शोभायुक्त हो जाते थें, लेकिन आपके कामदारी के समय अनेक प्रकार के विचार संघर्ष प्रभावशाली रहे। धार्मिक साहित्य के संग्रह करने को आपको बहुत शौक था, लेकिन उनके संग्रह किये हुयें साहित्य का किसी दूसरे को लाभ प्राप्त नहीं हो सका। एक लम्बे समय तक कामदार पद पर बनें रहने पर श्री गुम्मट जी तथा श्री बंगला जी की अनेक सेवायें आपने सुन्दरसाथ से करवाई जो आज भी यथावत बनी हुई है।

17. ब्रह्ममुनी श्री भजनदास जी महाराज
श्री सुन्दरदास जी कामदार के बाद श्री भजनदास जी कामदार पद पर आसीन हुये। आपके पिता श्री का नाम श्री हंसदास जी था, आपके ही समय में वि.स. 1980 में श्री 108 श्री प्राणनाथ जी मंदिर प्रबंधक कमेटी की स्थापना हुई। जिसके चेयरमेन सेठ श्री लालजी डूगरसी बंबई तथा उप-चेयरमेन सेठ साहेब श्री मांगीलाल जी भंडारी इन्दौर वाले चुने गये।
कामदार श्री भजनदास जी भोले स्वभाव के थे। सादा जीवन तथा सरल प्रकृति के थे। इसलिये प्रबंधक कमेटी के साथ में अपने संबंध तथा अपनी कार्य प्रणाली को ठीक तरह से निभाने में समर्थ न हों सकें। इसलिये आपको अल्प समय के बाद दिनांक 12-7-1927 ई. को कामदार पद से मुक्त होना पड़ा ।

18. ब्रह्ममुनी श्री जुगलदास जी महाराज
श्री भजनदास जी के कामदारी पद से मुक्त होने के पश्चात कमेटी एवं स्थानीय सुन्दरसाथ की सम्मति से पन्ना नरेश ने दि. 19-11-27 को श्री जुगलदास जी को शिरोपाव प्रदान कर कामदार के गरिमामय पद पर नियुक्त किया। इनके पूर्व तीन कामदार हो चुके थे, उन्हे अपनी कामदारी पद पर नियुक्ती होने के लिए पन्ना नरेश को अपने घर से 501 रू. भेंट करना पडता था। यह परम्परा प्रारम्भ से नही थी। इसलिये कामदार श्री जुगलदास जी महाराज ने इस परम्परा को सदा के लिए स्थगित करवाने का श्रेय प्राप्त किया। आपने कमेटी के साथ अच्छे संबंध स्थापित करते हुये अपनी सुयोग्यता एवं मधुर भाषण से श्री मंदिर जी का प्रबंध संचालन किया।

19. ब्रह्ममुनी श्री नन्दकुमार जी महाराज
श्री आदरणीय जुगलदास जी कामदार के अनन्तर प्रबंध कमेटी एवं स्थानीय समस्त सुन्दरसाथ जी की सम्मति से श्री नन्दकुमार जी महाराज को कामदार पद पर पदासीन किया गया। आप भूतपूर्व कामदार श्री सुन्दरदास जी के ज्येष्ठ पुत्र थें और बंबई के ख्याति प्राप्त मंहत साहेब श्री नारायणदास जी के प्रपौत्र थे। आपका व्यक्तित्व बड़ा ही आकर्षक था। आपका हष्ट-पुष्ट लम्बा-चौड़ा शरीर बहुत ही प्रभावशाली था।
आपने कुछ समय तक श्री बंगला जी में पूजा का कार्य बड़ी श्रद्धा और भक्ति के साथ निभाया ।

20. ब्रह्ममुनी श्री चेतनदत्त जी महाराज
श्री नन्दकुमार कामदार के पश्चात पण्डित श्री चेतनदत्त जी कामदार के पद पर सन् 1950 में पदासीन हुये। आपका जन्म सन 1916 आषाढ़ कृष्ण सप्तमी को हुआ था। आपके पूज्य पिता श्री का नाम श्री दंगलदास जी त्रिपाठी एवं परम साध्वी माता श्री सुन्दरबाई थी। आप प्रारम्भ में संस्कृत के छात्र रहें है। अतएव विशेष अध्ययन के लिए इन्दौर तथा काशी जाना पड़ा। अध्ययन समाप्ति के उपरान्त आप श्री कृष्ण निजानन्द माध्यमिक विधालय धाम पन्ना में संस्कृत अध्यापक के स्थान पर नियुक्त हुये। आपने परमहंस श्री मेहरदासजी महाराज से शिक्षा-दीक्षा प्राप्त की।