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1. ब्रह्ममुनी श्री गरीबदास जी महाराज

इस व्यवस्था की परम्परा के प्रारम्भ में सर्वप्रथम कामदार का महत्वपूर्ण पद श्री गरीबदास जी को प्रदान किया गया।

नाग जी अति नेह सो, छोड़ी कुटुम्ब की आस ।

तनम न धन सब ले चल्या, पाया खिताब 'गरीबदास' (श्री लालदास कृत बीतक)


नग जी भाई सूरत के मूल निवासी थे, महामति को जागनी अभियान के लिए सूरत से प्रस्थान कर गुजरात (अहमदाबाद) सिद्धपुर, मेड़ता (राजस्थान) और आगरा, मथुरा, वृंदावन की यात्रायें करते हुये दिल्ली जाना पड़ा और औरगंजेब के धर्मदमन को रोकने के लिए 17 माह तक दिल्ली के अनेक स्थानों पर निवास करना पड़ा।


इस प्रकार धर्म संग्राम का समाचार फैलते ही चारों ओर से धर्मानुरागी सुन्दरसाथ बहुत भारी संख्या में दिल्ली आ पहुँचा, सूरत से श्री नागजी 'भाई अपना समस्त कुल परिवार त्यागकर दिल्ली आ पहुचें थें। वे बड़ेंही सेवा परायण पुरूष थे। अतएव श्री महामति जी ने उनकी सेवा भावना से प्रभावित होकर सर्वप्रथम कामदार का गौरवमय पद प्रदान कर गौरवान्वितक किया, श्री गरीबदास जी ने दिल्ली से रामनगर की जागनी अभियान यात्रा तक बड़ी निष्ठा से कामदार पद को सुशोभित किया। अवस्था एवं अस्वस्थता के कारण रामनगर में ही विशेष विनय के साथ आप इस पद से मुक्त हो गये ।


संकलन कर्ता : पुजारी श्री प्रशांत शर्मा 

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