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18. श्री जुगलदास जी कामदार

श्री भजनदास जी के कामदारी पद से मुक्त होने के पश्चात कमेटी एवं स्थानीय सुन्दरसाथ की सम्मति से पन्ना नरेश ने दि. 19-11-27 को श्री जुगलदास जी को शिरोपाव प्रदान कर कामदार के गरिमामय पद पर नियुक्त किया। इनके पूर्व तीन कामदार हो चुके थे, उन्हे अपनी कामदारी पद पर नियुक्ती होने के लिए पन्ना नरेश को अपने घर से 501 रू. भेंट करना पडता था। यह परम्परा प्रारम्भ से नही थी। इसलिये कामदार श्री जुगलदास जी महाराज ने इस परम्परा को सदा के लिए स्थगित करवाने का श्रेय प्राप्त किया। आपने कमेटी के साथ अच्छे संबंध स्थापित करते हुये अपनी सुयोग्यता एवं मधुर भाषण से श्री मंदिर जी का प्रबंध संचालन किया।


टाप अपने पूज्य पिता जी के पूर्ण कृपापात्र थे, अतएव आप सुयोग्य चिकित्सक थे। अनेक प्रकार की औषधियों भस्में आप स्वयं तैयार करवाते थे। अनेक प्रकार के अचार मुरब्बे और तेल आदि बनवाने का बड़ा शोक था। बात करते समय उनका एक तकिया कलाम था। "मैने कहा" जिसे सुनते ही लोग प्रसन्न हो जाते थे।


दैवयोग से अंतिम समय में उनके स्वास्थ्य ने उनका साथ नहीं दिया। इन्दौर भोपाल, आदि क ख्याति प्राप्त चिकित्सकों से चिकित्सा कराने पर भी उन्हें श्री जी के चरणो में सहारा लेना पड़ा ।


संकलन कर्ता : पुजारी श्री प्रशांत शर्मा, धाम पन्ना.