
12. श्री निर्मलदास जी कामदार (ठाकुरबब्बा)
श्री मान उत्तमदास जी कामदार के बाद श्री निर्मलदास जी महाराज कामदार पद पर पदासीन हुये। आप स्थानिय समाज में ठाकुर बब्बा जी के नाम से प्रसिद्ध हुयें, आपका जन्म श्री महामति श्री प्राणनाथ जी के अग्रज भाई श्री श्यामलिया ठाकुर की पॉचवी पीढ़ी के अन्तर्गत श्री युक्त ठाकुर साहेब भक्तराज जी के यहाँ वि.स. 1848 में हुआ था। आपका जीवन चमत्कारपूर्ण एवं आदर्शमय था। आपने अपना विशेष समय भजन-पूजन और श्री सुन्दरसाथ की सेवा में ही व्यतीत किया। आपने श्री जी की कृपा से ही कामदार पद प्राप्त किया था। आप सदा आत्म-संतोषी होने के कारण राज-वैभव एवं लोक सम्मान से सदा दूर रहते थे। सादा जीवन, उच्च विचारों के आप धनी थे। उस समय आज के युंग की तरह मंदिर जी का विशाल कार्य विभाग नहीं था। सीमित आय से ही मंदिर जी का संपूर्ण कार्य संपन्न होता था। जब कभी आपको यह जानकारी मिलती कि मंदिर जी के भंडार में पैसों की कुछ कमी हो रही है। बस आप निराहार एक आसन पर बैठ जाते और आप तभी अपने भजनासन से उठते, जब कोई कर्मचारी किसी मनीऑर्डर या अन्य प्रकार से भंडार जी की थैली भर जाने का संदेश देता।
आपने अपनी 28 वर्ष की उम्र में कामदार का पद प्राप्त किया था, और उसे 98 वें वर्ष की अवस्था तक बड़े संतोष के साथ निभाते रहें। आप महन्त के ठाट बाट से सबके मन को सदा संतुष्ट रखते हुए कामदार पद को सुशोभित करतें रहें । वृद्धावस्था के अवसर पर आप अपनी मण्डली सहित यात्रार्थ श्री नवतनपुरी धाम चल दिये। श्री नवतनपुरी में श्री बिहारीदास जी महाराज ने आपका यथोचित स्वागत किया एवं सम्मान प्रदान किया। आपने भी अपनी प्रतिष्ठा के अनुसार वहाँ मेला-भण्डारा किया तथा दान-दक्षिणा वितरित की। आप नवतनपुरी में कुछ समय वास कर परिभ्रमण करते हुये जब श्री पदमावतीपुरी पधारे, उस समय दूसरे कामदार पदस्थ हो चुके थे और उन्होने अपनी लापरवाही से मंदिर जी की व्यवस्था बहुत ही संतोषजनक कर दी थी। यात्रा से लौटने पर पन्ना नरेश ने पुनः आपको ही कामदारी सौपी, अंतिम समय तक आपने कामदारी को अच्छी तरह संभाला। आपके जमाने में राज्य के अतिकांश अदालती मुकदमें आपकी सम्मति से ही निपटाये जाया करते थे। वि.स. 1946 अगहन सुदी 5 को आप परमधामवासी हो गये। आपकी गादी आज भी मोदी खाना में है। जहां पर हमेशा अपकी स्तुति की जाती है। - संकलन कर्ता : पुजारी श्री प्रशांत शर्मा, धाम पन्ना.