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3. कामदार श्री वृदांवन जी महाराज

श्री वृदांवन जी भुजनगर (गुजरात) के मूल निवासी श्री हरिदास के पुत्र थे। श्री हरिदास जी महाराज को श्री बालमुकुन्द जी ने प्रत्यक्ष दर्शन देकर जब श्री देवचन्द्र जी महाराज के परम दिव्यतम स्वरूप का परिचय प्रदान किया, तब उससे प्रवाभित होकर श्री हरिदास जी श्री देवचन्द्र जी से दीक्षा प्राप्त कर अपने पूरे परिवार सहित उनके चरणों में समर्पित हो गये। श्री वृदांवन जी भी उनके साथ थे।

 

 "वृदांवन ईमान ल्याईया, करी सेवा खास" इसलियें कामदारी की सेंवा का भार श्री महामति की आज्ञा प्राप्त कर श्री लालदास जी ने वृंदावन जी का प्रदान कर दिया। महाराज लालदास जी को बादशाह के समीप पुनः संदेश पहुँचानें का आदेश हुआ था। लेकिन इसी समय छत्रशाल बुन्देला का नाम चर्चा का विषय बन गया था। अतएव श्री लालदास जी को छत्रशाल के पास अपना संदेश पहुँचाने के लिए आदेश प्रदान किया गया। श्री महामति का संदेश पाकर श्री छत्रशाल जी ने अपना परम सौभाग्य माना और अपनी ओर से महामति से समीप आमंत्रण भिजवाया।


 वि.स. 1740 में पन्ना आगमन पर श्री सुन्दरसाथ जी की सेवा का भार बहुत विशाल हो गया, जिसे संभालने में अनुभवहीन होने के कारण श्री वृदांवन जी बहुत असमर्थ थें, तब छोड़ी सेवा वृदांवन ने फेर दई लालदास को सब" इस प्रकार यह गौरव गरिमामय पद श्री लालदास जी को पुनः स्वीकार करना पड़ा ।


संकलन कर्ता : पुजारी श्री प्रशांत शर्मा